ताश का महल
क्या हुआ जो ढह गया
एक पुराना महल
आखिर वह बना ही था
ताश के पत्तों से .
चाहे उस पर जितनी
सिलेटी पॊलिश हो जाती
वह सीमेंट का न बन पाता .
नही सह सकता वह
उस हवा को
जो अवश्यम्भावी थी
शक्तिशाली थी और
टूट जाना ही था
हर उस महल को
ताश के
जो ऊंचे ठूंठ की भांति
समझ रहा था खुद को
और तैयार न था
झुकने को .
तोड देती हैं हवाएं
समय की
इसी प्रकार रूढियो को
तूफ़ान बदलाव का
ढहा देता है
नकली सीमेंटी महलों को
जो खुद को कठोर ठूंठ समझ
उसी की गति को
प्राप्त होते हैं.
Sunday, March 21, 2010
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